बॉलीवुड में एक और स्टार किड की एंट्री धमाकेदार होने की उम्मीद थी, लेकिन लगता है ‘सरज़मीन’ ने इब्राहिम अली खान के डेब्यू को ही ‘बे-सर’ कर दिया है! करण जौहर के धर्मा प्रोडक्शंस की इस बहुप्रप्रतीक्षित फिल्म को लेकर दर्शकों में काफी उत्सुकता थी, खासकर इसलिए क्योंकि इसमें काजोल और पृथ्वीराज सुकुमारन जैसे दिग्गज कलाकार भी थे। लेकिन, रिव्यूज की मानें तो यह फिल्म ‘सफ़ेद हाथी’ साबित हुई है, जो न तो देशभक्ति जगा पाई और न ही दर्शकों के दिलों को छू पाई।
फिल्म को लेकर समीक्षकों ने जो राय दी है, वह किसी ‘तमाशे’ से कम नहीं है। हिंदुस्तान टाइम्स ने इसे ‘स्नूज़फेस्ट’ (नींद लाने वाली) करार दिया है, जिसमें कुछ भी काम नहीं कर रहा। इंडिया टुडे ने तो यहां तक कह दिया कि फिल्म ‘सर’ भूल गई और ‘ज़मीन’ खो बैठी, फिर भी खुद को देशभक्ति वाली मानती है। तो आखिर क्या हुआ इस ‘सरज़मीन’ के साथ? आइए, एक-एक करके परतें खोलते हैं और देखते हैं कि कैसे एक ‘बड़ी’ फिल्म ‘फ्लॉप’ की लिस्ट में शामिल हो गई।
इब्राहिम अली खान: ‘दिखने में हीरो, एक्टिंग में ज़ीरो’?
सैफ अली खान और अमृता सिंह के बेटे इब्राहिम अली खान को लेकर काफी हाइप थी। उनकी फिजिक और स्टाइल को देखकर लगा था कि बॉलीवुड को एक नया एक्शन हीरो मिल गया है। लेकिन, ‘सरज़मीन’ में उनकी एक्टिंग को देखकर समीक्षक हैरान रह गए। हिंदुस्तान टाइम्स ने तो यहां तक कह दिया कि उनके पास मुश्किल से ‘दस लाइनें’ थीं, और उनमें भी वह बेअसर दिखे। इंडिया टुडे ने तो सीधे-सीधे कह दिया कि एक आतंकवादी के रूप में उनका प्रदर्शन ‘अविश्वसनीय’ था। ऐसा लगता है कि इब्राहिम को अभी एक्टिंग की पाठशाला में बहुत होमवर्क करना है। उनका किरदार ‘मिसफिट’ लगा और वह मुश्किल दृश्यों में अपने चेहरे पर कोई भाव नहीं ला पाए। क्या मॉडलिंग ही उनके लिए सही रास्ता था? यह सवाल अब उठने लगा है।
काजोल और पृथ्वीराज: ‘अंडरयूटिलाइज्ड’ या ‘बेबस’?
काजोल और पृथ्वीराज सुकुमारन जैसे मंझे हुए कलाकारों से दर्शकों को काफी उम्मीदें थीं। लेकिन, समीक्षकों का कहना है कि दोनों को ‘अंडरयूटिलाइज्ड’ किया गया है। हिंदुस्तान टाइम्स के अनुसार, पृथ्वीराज को एक ‘खोखली’ भूमिका मिली, जिसमें वह केवल ‘गुस्से’ या ‘आँसू’ बहाते दिखे। उनकी एक्टिंग में कोई गहराई नहीं थी। वहीं, काजोल, जो ‘माई नेम इज खान’ में एक टूटी हुई माँ के रूप में शानदार थीं, ‘सरज़मीन’ में अपनी पुरानी चमक खो चुकी हैं। इंडिया टुडे ने तो उनकी भूमिका को ‘लाउड और खोई हुई’ बताया है, जो केवल ‘भावनात्मक क्लिच’ पर आधारित थी, वास्तविक अनुभवों पर नहीं। एक सेना अधिकारी की पत्नी के रूप में उनका चित्रण ‘अवास्तविक’ और ‘यथार्थ से कटा हुआ’ लगा। ऐसा लगता है कि खराब स्क्रिप्ट और निर्देशन ने इन दोनों दिग्गजों को भी बेबस कर दिया।
कायोज़ ईरानी का ‘अमेच्योर’ निर्देशन: क्या बोमन ईरानी का नाम डूबा?
बोमन ईरानी के बेटे कायोज़ ईरानी ने ‘सरज़मीन’ से निर्देशन में डेब्यू किया है। बोमन ईरानी ने अपने बेटे को ढेर सारी शुभकामनाएं दी थीं और कहा था कि दर्शकों को इस फिल्म को ‘पूरा प्यार’ देना चाहिए। लेकिन, रिव्यूज की मानें तो कायोज़ का निर्देशन ‘अमेच्योर’ (शौकिया) लगा। हिंदुस्तान टाइम्स ने तो सीधे-सीधे कहा कि कायोज़ द्वारा लिखी गई पटकथा ‘अमेच्योर’ थी। फिल्म में भावनात्मक क्षमता का दोहन नहीं किया गया। एक देशभक्ति वाली फिल्म, जिसमें एक बेटे के खोने की कहानी हो, उसे दर्शकों को रुलाना चाहिए था, लेकिन ‘सरज़मीन’ में ‘शून्य भावनात्मक क्षण’ थे। इंडिया टुडे ने तो यहां तक कहा कि फिल्म ‘आधी-अधूरी विचारधाराओं, आलसी लेखन और तेज बैकग्राउंड म्यूजिक’ का एक ‘गड़बड़झाला’ है, जो वास्तविक तीव्रता की कमी को पूरा करने की कोशिश कर रहा है। क्या कायोज़ ने अपने पिता के नाम को डुबो दिया है? यह सवाल अब उठने लगा है।
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कहानी में ‘झोल’ और ‘अविश्वसनीयता’: क्या मेकर्स ने दर्शकों को बेवकूफ समझा?
फिल्म की कहानी को लेकर भी समीक्षकों ने कई सवाल उठाए हैं। हिंदुस्तान टाइम्स के अनुसार, फिल्म की कहानी में ‘रश्ड स्टोरीटेलिंग’ (जल्दबाजी में कहानी कहना) और ‘कमजोर प्रदर्शन’ है। इंडिया टुडे ने तो सीधे-सीधे कहा कि कहानी ‘भारतीय सेना या आतंकवादी संगठनों के कामकाज की सबसे काल्पनिक समझ’ के साथ लिखी गई है। फिल्म में एक सेना अधिकारी के बेटे का अपहरण होता है, और वह बाद में आतंकवादी बन जाता है। यह एक दिलचस्प ‘हुक’ था, लेकिन फिल्म ने इसे ‘नीरस और भ्रमित करने वाले ट्रॉप’ में बदल दिया। सबसे बड़ा सवाल यह है कि कौन सी राष्ट्रीय एजेंसी एक आतंकवादी को एक सेना अधिकारी के बेटे को स्वतंत्र रूप से रखने और पालने की अनुमति देगी? यह फिल्म किस ‘तर्क-विरोधी’ दुनिया में काम कर रही है? ऐसा लगता है कि मेकर्स ने दर्शकों को बेवकूफ समझा है।
संगीत और एक्शन: ‘भूलने योग्य’ और ‘बेजान’
फिल्म का संगीत विशाल मिश्रा ने दिया है, लेकिन हिंदुस्तान टाइम्स ने इसे ‘भूलने योग्य’ बताया है। वहीं, एक्शन सीक्वेंस को लेकर इंडिया टुडे ने कहा कि वे ‘बेजान’ लगते हैं, जैसे उन्हें बिना किसी दांव के कोरियोग्राफ किया गया हो। फिल्म में तनाव और तात्कालिकता की कमी है। सिनेमैटोग्राफी भी औसत दर्जे की है। ऐसा लगता है कि फिल्म के हर पहलू में कमी रह गई है।
निष्कर्ष: ‘सरज़मीन’ का ‘फ्लॉप’ होना तय?
कुल मिलाकर, ‘सरज़मीन’ को समीक्षकों ने 1.5/5 स्टार दिए हैं, जो किसी भी फिल्म के लिए एक खराब रेटिंग है। फिल्म में न तो देशभक्ति है, न ही भावनात्मक जुड़ाव और न ही कोई दमदार प्रदर्शन। इब्राहिम अली खान का डेब्यू फ्लॉप रहा है, काजोल और पृथ्वीराज जैसे दिग्गज भी बेअसर दिखे हैं, और कायोज़ ईरानी का निर्देशन भी सवालों के घेरे में है। ऐसा लगता है कि ‘सरज़मीन’ बॉक्स ऑफिस पर ‘धड़ाम’ होने वाली है। दर्शकों को सलाह दी गई है कि अगर वे भावना या दमदार प्रदर्शन देखना चाहते हैं, तो ‘मैं हूं ना’ दोबारा देख लें, क्योंकि वहां शाहरुख खान ने तो कम से कम ‘डिलीवर’ किया था। क्या यह फिल्म करण जौहर के धर्मा प्रोडक्शंस के लिए एक बड़ा झटका साबित होगी? समय ही बताएगा। लेकिन, फिलहाल तो ‘सरज़मीन’ ने अपनी ‘ज़मीन’ खो दी है।